Sunday, November 14, 2010

उ.प्र. में दलित : घर का ना घाट का

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार है। मायावती मुख्यमंत्री हैं। अक्सर अखबारों में उनकी योजनाओं के बारे में फुल - फुल पेज के विज्ञापन दिये जाते हैं। योजनाएं लागू हो रही हैं उत्तर प्रदेश में लेकिन उनका विज्ञापन मुंबई एवं दिल्ली के भी विभिन्न बड़े समाचार पत्रों में छप रहे है। इस बात का भी जमकर प्रचार किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार नहीं होने पा रहा है। चुनावों में भी इन बातों का जिक्र किया जाता है कि बहनजी की सरकार में दलित सिर उठाकर चल रहा है। लेकिन क्या वास्तव में यह सच्चाई है?
मैं उस सच्चाई का बयान यहां करने जा रहा हूं जो मैं अपनी आंखों से देखकर आ रहा हूं और अनुभव भी। और वह यह है कि बहुजन समाज पार्टी जबसे सर्वसमाज की पार्टी हुई है तब से दलितों के नेता भी दूसरे समाज के लोगों के रहमों करम पर जीने लग गए हैं। उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों के दो चरण मेरी आंखों के सामने हुए हैं और शासन प्रशासन के अलावा वहां की राजनीति पर भी मैंने बारीकी से ध्यान दिया। हमने देखा है कि बिना किसी के दबाव के आज भी उत्तर प्रदेश के थानों में दलितों के एफआईआर नहीं लिखे जाते हैं। अगर पुलिस ने कुछ सक्रियता दिखाई भी तो दोनों पक्षों को बुलाकर डांट-फटकार कर सुलह करवा देती है, और सुलह भी मुफ्त में नहीं होता है.... हालांकि मैं यह भी नहीं कहता कि उत्तर प्रदेश के सभी जिलों का यह हाल है लेकिन बस्ती, संत कबीर नगर, बाराबांकी जैसे जिलों में तो काफी स्थानों पर यही हो रहा है। मेरा अनुभव बस्ती जिले का है। दरअसल सितंबर २०१० में मैं गांव गया था और अक्टूबर महीने में वापस मुंबई आया हूं।
कहने को तो पंचायत चुनावों में भी आरक्षण पूरी तरह से लागू हो गया था लेकिन फिर भी चुनाव ज्यादातर उन जगहों पर जहां जो सीटें दलितों के लिए आरक्षित थीं, वहां वही दलित चुनाव लड़ पाया जिसको बसपा के सर्वसमाज (दलितों को छोड़कर) के लोगों ने लड़ाया । जो इस सर्वसमाज के इशारे पर नहीं लड़ा वह चुनाव हार गया। हमारे प्रिय मित्र एमपी राव भी बस्ती से जिला पंचायत का चुनाव लड़े। बता दें कि वे पूरी निष्ठा से करीब बीस साल से समाज के साथ ही बहुजन समाज पार्टी की भी सेवा कर रहे हैं। उनके योगदान को देखेंगे तो जिले के तमाम बड़े नेताओं पर भी उनकी सेवा भारी पड़ जाएगी, लेकिन कई सारे नेताओं ने उनको हराने के लिए प्रतिद्वंदी उम्मीदवार के पक्ष में पैसे बांटे और वही तथाकथित सर्वसमाज (बसपा) के नेताओं ने उनके विरुद्ध प्रचार भी किया। यही नहीं यह पहली बार नहीं हुआ है उनके साथ। दूसरी बार हुआ है और पिछली बार वर्तमान (बसपा) सरकार में कैबिनेट मंत्री ने भी उनके खिलाफ प्रचार किया था। मुझे लगता है कि पूरे जिले में धीरे-धीरे तमाम दलित नेताओं को अब ठिकाने लगा दिया गया है, वे न तो चुनाव लड़ने लायक बचे हैं और न ही किसी दलित की आवाज उठाने लायक। उल्लेखनीय है कि बसपा के पिछले बस्ती सांसद लालमणि प्रसाद को बाराबंकी से टिकट मिला था, और वे हार गये जबकि उनके स्थान उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रामप्रसाद चौधरी के भतीजे अरविंद चौधरी को टिकट देकर लड़ाकर जिताया गया। इस प्रकार बस्ती जिले के एक दलित नेता को ठिकाने लगा दिया गया। आखिर यह किस प्रकार बहुजन समाज पार्टी की सरकार है। जहां बहुजन समाज के लोगों को ठिकाने लगाया जा रहा है। मैंने तो सिर्फ एक छोटे से इलाके का उदाहरण दिया है, लेकिन ध्यान देने पर ऐसे बहुत सारे उदाहरण मिल जाएंगे। आखिर आप ही बताएं कहां है उत्तर प्रदेश का दलित। घर का, या घाट का....?

Saturday, November 13, 2010

क्योंकि पैसा बहुत जरूरी है....

वास्तव में आज के समाज में पैसा बहुत जरूरी हो गया है। चोरी, बोईमानी, घोटाला, रिश्वतखोरी आदि सभी बुरे कार्य लोग पैसे के लिए ही कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि पैसे कमाने का कोई अच्छा माध्यम नहीं है, लेकिन उपरोक्त साधन ऐसे साधन हैं, जो कम समय में ही बहुत बड़ा आदमी बनाने का माद्या रखता है। वजह साफ है कि जिसके पास पैसा है उसे दुनिया सलाम कर रही है।
देश की आजादी के समय महात्मा गांधी, सरदार भगत सिंह, राजगुरु, महाराणा प्रताप, चंद्रशेखर आजाद, डाक्टर आंबेडकर जैसे महान नेताओं ने शायद ही ऐसा सोचा हो कि कभी लोग राजनीति को बतौर पेशा अपनाएंगे, क्योंकि उन लोगों ने तो देश को आजाद कराके देशवासियों को सही दिशा देने के लिए राजनीति का दामन थामा था। लेकिन दुर्भाग्य से देश के अधिकतर नेता आज ऐसे मिलेंगे जो राजनीति शुरू करने के समय झंडा बैनर छपवाने के लिए मोहताज रहा करते हैं लेकिन आज राजनीति में के थोड़े ही दिन बाद वे करोड़ों में खेल रहे होते हैं। आखिर इसका क्या कारण है?
सुखराम, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव, लालू यादव, जार्ज फर्नांडीज, बंगारू लक्ष्मण, जयललिता, मायावती, दिलीप सिंह जूदेव, मधु कोड़ा, सुरेश कलमाड़ी, अशोक चव्हाण, ए राजा सहित सैकड़ों ऐसे नाम मिल जाएंगे जिनपर घोटाले के बड़े-बड़े आरोप लगे। यही नहीं बहुत सारे नेता इतना घोटाला किए कि उनके पास अपने देश में ठिकाना ही नहीं बचा कि आखिर वह पैसा कहां रखें और उसे विदेश के बैंकों में जमा कर आए। और देश का दुर्भाग्य यहां तक रहा कि वे नेता उस पैसे को न तो कभी निकाल पाए और ना ही अपने देश में खर्च कर पाए। आखिर आप ही सोचें कि क्या ऐसे लोग देशद्रोही नहीं हैं? क्या इन्हें देश में किसी भी पद पर रहने का हक है? जो एक तो अपने देश में घोटाला करते हैं, दूसरे अन्य देश में जाकर जमा कर आते हैं तथा बाद में पाते भी नहीं। फिर भी मौका पाने पर अगले घोटाले के फिराक में न कि रहते हैं बल्कि उसके लिए जमकर संघर्ष भी करते रहते हैं और आखिर में कहीं न कहीं फिट भी हो जाते हैं।
दर्द हद को तब पार कर जाता है जब अपने ही देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के हक पर भी ये अपना हक जमाने लगते हैं। ये वही सैनिक हैं जो देश की रक्षा के लिए अब भी अपना जान हथेली पर लेकर घूमते हैं और उन्हीं की सुरक्षा में सेंध लग जाती है और पैसों की लालच करके मुंबई की आदर्श सोसायटी जैसी बहुमंजिली इमारत खडी हो जाती है। मुझे नहीं लगता है कि देश के ऐसे नेताओं को कसाब से छोटी सजा दी जानी चाहिए। आखिर इनमें और कसाब में फर्क क्या है, सिर्फ इतना की कसाब ने सीने में गोली मारी और ये नेता पीठ में गोली मार रहे हैं। कसाब ने एके ४७ का इस्तेमाल किया जबकि इन देशद्रोहियों ने धोखे नाम के गन का इस्तेमाल किया। आज देश में अमीर और भी अमीर होता जा रहा है, गरीब और भी गरीब होता जा रहा है। चारों तरफ लूट पड़ी है। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है... आतंकवादी घटनाएं बढ़ रही हैं, इसका जिम्मेदार कौन है.... इसका जवाब यह है कि वही जिम्मेदार हैं जो बड़ा घोटाला करने के लिए छोटे मोटे अधिकारियों को रिश्वत लेने की छूट दे रहे हैं, जो रिश्वत लेकर दूसरे देशों से अपने देश में अवैध हथियार आने की अनुमति दे रहे हैं। आखिर कब तक चलता रहेगा यह सब? खैर इन सबका अंत तो होना ही है, लेकिन अंत करने वाला भी हम-आप में से ही कोई होगा ना कि कोई बाहर से आएगा। क्योंकि राम और कृष्ण भी हमारे ही बीच से पैदा हुए थे.... तो दोस्तों करप्शन को खत्म करने देश बचाने के लिए एक प्रयास तो करके देखो..... क्योंकि -
कौन कहता है कि आसमां में सुराख नही हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों....।