उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार है। मायावती मुख्यमंत्री हैं। अक्सर अखबारों में उनकी योजनाओं के बारे में फुल - फुल पेज के विज्ञापन दिये जाते हैं। योजनाएं लागू हो रही हैं उत्तर प्रदेश में लेकिन उनका विज्ञापन मुंबई एवं दिल्ली के भी विभिन्न बड़े समाचार पत्रों में छप रहे है। इस बात का भी जमकर प्रचार किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार नहीं होने पा रहा है। चुनावों में भी इन बातों का जिक्र किया जाता है कि बहनजी की सरकार में दलित सिर उठाकर चल रहा है। लेकिन क्या वास्तव में यह सच्चाई है?
मैं उस सच्चाई का बयान यहां करने जा रहा हूं जो मैं अपनी आंखों से देखकर आ रहा हूं और अनुभव भी। और वह यह है कि बहुजन समाज पार्टी जबसे सर्वसमाज की पार्टी हुई है तब से दलितों के नेता भी दूसरे समाज के लोगों के रहमों करम पर जीने लग गए हैं। उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों के दो चरण मेरी आंखों के सामने हुए हैं और शासन प्रशासन के अलावा वहां की राजनीति पर भी मैंने बारीकी से ध्यान दिया। हमने देखा है कि बिना किसी के दबाव के आज भी उत्तर प्रदेश के थानों में दलितों के एफआईआर नहीं लिखे जाते हैं। अगर पुलिस ने कुछ सक्रियता दिखाई भी तो दोनों पक्षों को बुलाकर डांट-फटकार कर सुलह करवा देती है, और सुलह भी मुफ्त में नहीं होता है.... हालांकि मैं यह भी नहीं कहता कि उत्तर प्रदेश के सभी जिलों का यह हाल है लेकिन बस्ती, संत कबीर नगर, बाराबांकी जैसे जिलों में तो काफी स्थानों पर यही हो रहा है। मेरा अनुभव बस्ती जिले का है। दरअसल सितंबर २०१० में मैं गांव गया था और अक्टूबर महीने में वापस मुंबई आया हूं।
कहने को तो पंचायत चुनावों में भी आरक्षण पूरी तरह से लागू हो गया था लेकिन फिर भी चुनाव ज्यादातर उन जगहों पर जहां जो सीटें दलितों के लिए आरक्षित थीं, वहां वही दलित चुनाव लड़ पाया जिसको बसपा के सर्वसमाज (दलितों को छोड़कर) के लोगों ने लड़ाया । जो इस सर्वसमाज के इशारे पर नहीं लड़ा वह चुनाव हार गया। हमारे प्रिय मित्र एमपी राव भी बस्ती से जिला पंचायत का चुनाव लड़े। बता दें कि वे पूरी निष्ठा से करीब बीस साल से समाज के साथ ही बहुजन समाज पार्टी की भी सेवा कर रहे हैं। उनके योगदान को देखेंगे तो जिले के तमाम बड़े नेताओं पर भी उनकी सेवा भारी पड़ जाएगी, लेकिन कई सारे नेताओं ने उनको हराने के लिए प्रतिद्वंदी उम्मीदवार के पक्ष में पैसे बांटे और वही तथाकथित सर्वसमाज (बसपा) के नेताओं ने उनके विरुद्ध प्रचार भी किया। यही नहीं यह पहली बार नहीं हुआ है उनके साथ। दूसरी बार हुआ है और पिछली बार वर्तमान (बसपा) सरकार में कैबिनेट मंत्री ने भी उनके खिलाफ प्रचार किया था। मुझे लगता है कि पूरे जिले में धीरे-धीरे तमाम दलित नेताओं को अब ठिकाने लगा दिया गया है, वे न तो चुनाव लड़ने लायक बचे हैं और न ही किसी दलित की आवाज उठाने लायक। उल्लेखनीय है कि बसपा के पिछले बस्ती सांसद लालमणि प्रसाद को बाराबंकी से टिकट मिला था, और वे हार गये जबकि उनके स्थान उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रामप्रसाद चौधरी के भतीजे अरविंद चौधरी को टिकट देकर लड़ाकर जिताया गया। इस प्रकार बस्ती जिले के एक दलित नेता को ठिकाने लगा दिया गया। आखिर यह किस प्रकार बहुजन समाज पार्टी की सरकार है। जहां बहुजन समाज के लोगों को ठिकाने लगाया जा रहा है। मैंने तो सिर्फ एक छोटे से इलाके का उदाहरण दिया है, लेकिन ध्यान देने पर ऐसे बहुत सारे उदाहरण मिल जाएंगे। आखिर आप ही बताएं कहां है उत्तर प्रदेश का दलित। घर का, या घाट का....?
3 comments:
Dineshji - aap ki lekhni mai sirf aur sirf sachayi va imandari jhalakti hai. bhaut badiya likha hai
सच्चा और बहुत अच्छा आलेख
बहुत सच्ची और सार्थक पोस्ट| धन्यवाद|
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